How could I never touch you? Feel
you? See you? Before… How could I miss you? I cannot believe I have never known
you. You said it. At last. And you said it so easily. With such grace. Without élan.
How could you Kundera? Is it so light? Really? Removing clothes? Untagging? Unlabelling?
Feeling…simply feeling. The body enmeshed in soul. The skin soaked in delight. The
eyes choked with radiance. Without burden? Without load? Of morality? Righteousness?
Discrimination? Was it simple? Undemanding? Painless? I can imagine it would
have hurt a lot. You must have died many a times. Scorched. Cursed and stoned to
death. But you finally resurrected. Transformed. Your wounds. Your pains. And nailed
it. I too always thought so. But was also afraid to lead. Life is light. You said
it. And your reference has given me the weight. To admit it. Say it. Do it. It’s
unbearable. I know. The weight of lightness. Especially in the beginning when
you are naked. For the first time. Before the entire world draped in layers and
layers of conflicts. Battles. Wars. Without conclusion. Without liberation. It’s
difficult to meet. Initially. Connect. With others. Without relation. Familiarity.
Future. And gender too. But it’s beautiful. Indeed. How could we never
construct? A world in a world in a world. Millions of them. Merging and losing in
each other. But still remaining intact. Free. Legal. You were so fucking right,
Kundera. Let me tell you that I loved the whole of it. And I loved the aftermath
too. The woods. The rural way. And simple labor. You even made me cry in the
end. When Karenina dies a merciful death. When Tereza dances in the bar. With a
glow in her eyes. Without fears. Without strings. When Tomas says I m happy. And
everything vanishes forever. Into lightness. The unbearable one. Of being. Thank
you Kundera for enriching me. Enlightening me. Supporting me. I shall always be
grateful. Love you.
I was strolling on the road when I saw it coming, I could escape the collision but I let it go, It shattered me to pieces but I saved the very thing, they call me insane...
Wednesday, February 20, 2013
Saturday, February 16, 2013
इंतज़ार
एक चाँद
काटा था
उस रात
तुम्हारे जन्मदिन पर
सोचा
आधा आधा
खायेंगे
रात बीत गयी
तारों ने की
शिकायत
पर तुम
वादा भूल गयी
आ जाओ
एक दिन
पूरी कर दो
हसरत
चाँद
बेचारा
आधा सा
आज भी आधा पड़ा
है
तुम्हारे इंतज़ार में।।।
काटा था
उस रात
तुम्हारे जन्मदिन पर
सोचा
आधा आधा
खायेंगे
रात बीत गयी
तारों ने की
शिकायत
पर तुम
वादा भूल गयी
आ जाओ
एक दिन
पूरी कर दो
हसरत
चाँद
बेचारा
आधा सा
आज भी आधा पड़ा
है
तुम्हारे इंतज़ार में।।।
MORTALS
As mortals
We grow
Eat
Drink
And die
As mortals
We walk
Run
Fall
And cry
At the end
We remain
Mortals
Measly mortals
Let’s love
Kiss
Merge
And stride
Let’s vanish
As immortals
Beyond
Birth
Death
Existence
Non-existence
Into a timeless
Spaceless
Unified
Reality…
Wednesday, February 6, 2013
श्रुति।।। स्मृति।।। साधना।।।
श्रुति।।।
व्यापार
लेन देन
उपस्थिति
आसन
आधार
देह
पुरुष
प्राण
साधू
श्रवण
व्यक्ति
पूजा
भक्ति
रस्म
सत्संग
शब्द
आनंद
जाग्रत
उन्स
पृथ्वी।।।
स्मृति।।।
ध्यान
मिलन
प्रेम
विवाह
बंधन
अनुभव
देह-बुद्धि
जाग्रत-सुषुप्ति
अर्थ
व्यक्त
मानस
मनन
नृत्य
सिद्धि
संस्कार
स्मरण
समर्पण
सिमरन
नेती नेती
सोऽहं
संकल्प
विवेक
वैराग्य
आकाश
चिदानन्द
चिदाकाश।।।
साधना।।।
परिवर्तन
आगमन
इश्क
सम्भोग
स्वपन
लीला
दर्शन
संन्यास
त्याग
मुक्ति
कल्याण
प्रकृति
प्रलय
नटराज
ताण्डव
अव्यक्त
आत्म-प्रकाश
परमाकाश
सद्चितानन्द
महादकाश
महा-मृत्यु
महा-सत्तव
महा-तत्व
पारब्रह्म
ब्रह्मचर्य
स्वर्ग
शून्य
तुरिया
योगी
यज्ञ
मोक्ष
निरवाना
सत्यम
शिवम्
सुंदरम।।।
किरदार
कई आहें भरता हूँ
कई सांसें लेता हूँ
हर रोज़।
रोज़ स्क्रिप्ट के पन्नों पर
खींचा ताना जाता हूँ
पेंसिल से।
एक कल्पना हूँ।
लेखक के कैनवस पर
खिंची एक लकीर।
बाकी सभी लकीरों
जैसी।
ज़रूरी पर
मामूली भी।
इंसान जैसी
पर
जीवन से छोटी।
जीती जागती
मर जाने वाली।
फिल्म के रील जैसी
काली धुंधली
पर इतिहास समेटे
अंधेरी दलीलों में।
एक सत्य कहानी
पर रहस्य जैसी।
कई कॉस्टूम बदलता हूँ
कई चेहरे पेहेनता हूँ
हर रोज़।
ना शब्द मेरे
ना दास्ताँ मेरी
और ना ही रिश्ते नाते।
ना बिछुए मेरे
ना कंगन मेरे
और ना ही तख़्त ताबीज़।
ना आज़ान मेरी
ना अंत मेरा
और ना ही भूत भविष्य।
मैं तो ज़रिया हूँ
केवल।
और कुछ नहीं
कुछ भी नहीं।
देखा है
अक्सर
एक कोने में
आधे अधूरे
सियाही से सने
पन्नों को
कई अपने जैसे
किरदार समेटे
किस्मत की उड़ान
भरते
बीच कहीं
निराश हो जाते हैं।
कौन समझाए
पगलों को
नादां बेचारे।
मौत ही तो सत्य है
पारब्रह्म।
सद्चितानन्द।।।
कई बार जी चुका हूँ
मर चुका हूँ
कितने ही जीवन।
यह बूढ़ा स्टूडियो
प्रमाण है
मेरी गवाही का।
मेरे साथ
यह भी तय करता आया है
अब तक
इस सफ़र को।
कितनी बार रोंदा गया
कुचला गया
कभी फूलों से नवाज़ा
गया।
याद नहीं
भूल गया हूँ
सब हिसाब।
क्या घटा
जुड़ा
क्या गुणा
तकसीम हुआ।
एक अरसा लगता है
बीत गया
शायद।
बूढ़ा हो गया हूँ
अब।
कौन हूँ मैं
यह जान लूं तो
मर सकता हूँ
बेफ़िक्री से।
इस पन्नों की ढेरी
से
मुझे मेरा किरदार
लौटा दो।
और इस किरदारों की बस्ती
से
मुझे मेरा अक्स
लौटा दो।
फिर ओढ़ा के मुझ पे
मेरा अपना शरीर
विदा करो
मुझे रिहा करो।।।
Tuesday, February 5, 2013
मलहम
आधा सा
थका सा
लग रहा है
आज
दिन भर की गर्मी से
थपेड़ों से
बीमार पड़ गया है
शायद
छत की तलाश में
उदास
हताश
मुरझा गया है
नादान
शरीर ठंडा पड़ा है
जैसे मर गया हो कोई
सुनसान
बीयाबान
जा कर सो जाओ
उसके साथ
आबाद कर दो
सहमा बदन
मलहम भर देना
ज़ख्मों में
बातें करना
मीठी मीठी
मिसरी वाली
चटपटी
करारी
अपनी साँसों से
सहला देना बालों को
सूख गए हैं
रूखे रूखे
बेजान
लोरी सुनाना
नानी वाली
परियों और तारों
वाली
जब सो जाए तो ढक देना
कम्बल से
अच्छी तरह
फिर बत्ती बुझा के
आ जाना वापस
आखिर सुबह
फिर काम पे भी तो जाना है
दोबारा।।।
थका सा
लग रहा है
आज
दिन भर की गर्मी से
थपेड़ों से
बीमार पड़ गया है
शायद
छत की तलाश में
उदास
हताश
मुरझा गया है
नादान
शरीर ठंडा पड़ा है
जैसे मर गया हो कोई
सुनसान
बीयाबान
जा कर सो जाओ
उसके साथ
आबाद कर दो
सहमा बदन
मलहम भर देना
ज़ख्मों में
बातें करना
मीठी मीठी
मिसरी वाली
चटपटी
करारी
अपनी साँसों से
सहला देना बालों को
सूख गए हैं
रूखे रूखे
बेजान
लोरी सुनाना
नानी वाली
परियों और तारों
वाली
जब सो जाए तो ढक देना
कम्बल से
अच्छी तरह
फिर बत्ती बुझा के
आ जाना वापस
आखिर सुबह
फिर काम पे भी तो जाना है
दोबारा।।।
Sunday, February 3, 2013
उम्मीद
सुबह से आँख फड़क रही थी
अम्मी कहती है
किसी के आने का इशारा होती है
खुश थी
उम्मीद उगी थी
आँगन में
कई बरस बाद
मन बहका
नयी पोशाक पहनी
ज़री जड़े फूलों वाली
मेहंदी रचवाई
हाथों में
नाम गुदवाया उनका
उसमे
उलझी हुई लकीरों में
छोटा छोटा
ठण्डी अंगीठी में
कोयला डाला
तकदीर झोंकी चूल्हे में
उजड़ी हुई
बंजर बेजान
सरसों का साग बनाया
अब्बा बाज़ार से आटा ले आये
मक्की का
तभी अजीब सा शोर सुना
जैसे कोई गुल्लक फूटी हो
सपनों वाली
बाहर जाके देखा तो
खेत में आग लगी थी
रेडियो वाले बोले
ज़ाहिर की मौत हो गयी
एक प्लेन क्रैश में ...
Friday, February 1, 2013
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