शहर की परिधि को धुयें ने
घेरा हुआ है ।सुना है किसान पराली जला रहे हैं ।
कई बार गाड़ी का शीशा
साफ़ कर चुका हूँ ।
मिट्टी की चादर
जम सी गयी हो जैसे ।
हर शाम ट्राफिक सिग्नल पर
एक लड़का मिलता है
नयी किताबों के पेपरबैक बेचता ।
कई बार खरीदते हुए रह जाता हूँ
और वो भी मुस्करा के चल देता है ।
इक अनकही सहमती हो गयी है जैसे
रिश्ते को व्यावहार से ना छूने की ।
समय की रफ्तार से लड़ते
एक उम्र बीत गयी है ।
शायद आटोट्यून हो गई है चेतना
शहर की नीरसता से ।
आज सोसाइटी में
दीवाली का फंकशन है ।
13 मंज़िला इमारतों की
13 हज़ार कहानियां ।
सोसाइटी का गार्ड
सुबह से सुस्ता रहा है ।
गृहस्थी में पिस्ता पिस्ता
मर-सा गया हो जैसे ।
सड़क के किनारे
केले बेचने वाली छोटी सी लड़की
रोज़ की तरह इंतज़ार कर रही है
आपने भाई का ।
बस हथेली पर ठुड्डी रख ताकते रहती है
रिक्त आँखों से भीड़ को,
मानो वास्तविकता के प्रहारों ने
कुरेद दिया हो नन्हें सपनों को ।
लोग सजधज कर नीचे पहुँच गए हैं ।
गहनों से लदी औरतों की अपनी
टोलियाँ बन गयी हैं ।
नशे में मस्त सभी मर्द
कोट में हाथ डाले खिलखिला रहे हैं ।
और जवान लड़के लड़कियां
झूम रहे हैं ऑर्केस्ट्रा की ताल पर ।
तभी एक दिशा से अवसाद का कोहरा
घेर लेता है शाम को अपने आगोश में
और जड़ चेतन में
सदा के लिए समा जाता है ।
सुना है पास एक गाँव में
आग लगी है...
घेर लेता है शाम को अपने आगोश में
और जड़ चेतन में
सदा के लिए समा जाता है ।
सुना है पास एक गाँव में
आग लगी है...