Sunday, June 15, 2008

मेरी आज़ादी का अनुभव

मैं पिंजरे की बंद चिडिया हूँ
आजाद होना चाहती हूँ
उड़ना चाहती हूँ
एक दिन पिंजरे का मालिक पिंजरा
खोल देता है
अब आजाद हूँ
उड़ना सीख रही हूँ
पंख फैला रही हूँ
पर अब बहुत हुआ
मैंने अपने पंख काट दिए
वापस पिंजरे में बंद हूँ
सपने बहुत जी चुकी
आज़ादी बहुत जी चुकी
अब आराम करना चाहती हूँ
अब भी खुश हूँ
क्या बुरा है पिंजरे की ज़िंदगी में?