Sunday, February 3, 2013

उम्मीद



सुबह से आँख फड़क रही थी
अम्मी कहती है
किसी के आने का इशारा होती है
खुश थी
उम्मीद उगी थी
आँगन में 
कई बरस बाद
मन  बहका
नयी पोशाक पहनी
ज़री जड़े  फूलों वाली
मेहंदी रचवाई
हाथों में
नाम गुदवाया उनका
उसमे
उलझी हुई लकीरों में
छोटा छोटा
ठण्डी अंगीठी में
कोयला डाला
तकदीर झोंकी चूल्हे में
उजड़ी हुई
बंजर बेजान
सरसों का साग बनाया
अब्बा बाज़ार से आटा ले आये
मक्की का
तभी अजीब सा शोर सुना
जैसे कोई गुल्लक फूटी हो
सपनों वाली
बाहर जाके देखा तो
खेत में आग लगी थी 
रेडियो वाले बोले
ज़ाहिर की  मौत हो गयी
एक प्लेन क्रैश में ...

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