Thursday, October 28, 2010

सपना

तनहा काली रात में
जलते हुए चाँद की थाली पर
मुर्दा सपनों की कशिश परोसते रहे
सेहर हुई तो देखा रात भर सुलगती
हुई चांदनी छत पर बिखरी पड़ी है
समेटना चाहा तो सिवाए कालस के
कुछ हाथ न आया
तकिया हटाया तो देखा की एक
तस्वीर बिस्तर पर औंधी पड़ी थी
और चेहरे पर चादर की सिलवटों
के निशाँ थे...

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