तनहा काली रात में
जलते हुए चाँद की थाली पर
मुर्दा सपनों की कशिश परोसते रहे
सेहर हुई तो देखा रात भर सुलगती
हुई चांदनी छत पर बिखरी पड़ी है
समेटना चाहा तो सिवाए कालस के
कुछ हाथ न आया
तकिया हटाया तो देखा की एक
तस्वीर बिस्तर पर औंधी पड़ी थी
और चेहरे पर चादर की सिलवटों
के निशाँ थे...
जलते हुए चाँद की थाली पर
मुर्दा सपनों की कशिश परोसते रहे
सेहर हुई तो देखा रात भर सुलगती
हुई चांदनी छत पर बिखरी पड़ी है
समेटना चाहा तो सिवाए कालस के
कुछ हाथ न आया
तकिया हटाया तो देखा की एक
तस्वीर बिस्तर पर औंधी पड़ी थी
और चेहरे पर चादर की सिलवटों
के निशाँ थे...
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