Thursday, October 28, 2010

तस्वीर

कल यूँही पन्ने फरोलते हुए,
एक दीवान में रखी एल्बम के,
तस्वीर मिली एक अपनी पुरानी,
मटमैली, कोनों से छिदरी हुई,
एक अरसा पुरानी तस्वीर,
ज़बरदस्ती जो खिचवा दी थी तुमने,
कुल्लू की वादी में,
हट भी तो कर बैट्ठी थी तुम,
और मैं सब कुछ हार जाता था
तुम्हारे आगे,
उसी चाये वाले की दुकान के आगे,
जहां हर सुबह सैर के बाद
चाये पीया करते थे हम,
दिसम्बर की धुंध में हाथ
में चाये पकड़े मेरे हँसते
हुए के पोज़ में,
तस्वीर देख हैराँ हुआ,
शायद बरसों बाद जो देख रहा था,
खुद को हँसते हुए एक तस्वीर में,
तुम गयी और हँसना जैसे
भूल ही गया मैं,
या कहलो वक़्त ही नहीं मिला
कभी हंसने का,
बस चलता ही रहा अपनी जद्दोजेहद में,
आज तस्वीर में खुद को हँसते देखा,
तो एक तमन्ना जागी है इस मन में,
फिर से इक बार हँसना चाहता हूँ खुल के,
जानता हूँ बहुत कुछ बदल चुका है,
और ऐसा मौका मिल पाना भी मुश्किल है,
फिर सोचता हूँ,
की काश कहीं से आकर फिर से तुम
हट कर बैठो,
और ज़बरदस्ती ऐसी ही एक तस्वीर खिचवा दो...

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